We “Yuwa Ki Aawaz Sanstha” also Known as “Voice of Youth National Organization” started this project for Development of Chhattisgarh Tribal People. आदिवासी शब्द ( Tribal ) का मतलब होता है ‘मूल निवासी’। ये ऐसे समुदाय हैं जो जंगलों के साथ जीते आए हैं; और आज भी उसी तरह जी रहे हैं;। भारत की लगभग 8 प्रतिशत आबादी आदिवासियों की है। भारत में 500 से ज्यादा तरह के आदिवासी समूह है। छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल तथा उत्तर-पूर्व के अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड एवं त्रिपुरा आदि राज्यों में आदिवासियों की संख्या काफ़ी ज्यादा है। अकेले उड़ीसा में ही 60 से ज्यादा अलग-अलग जनजातीय समूह रहते हैं। आदिवासी समाज औरों से बिल्कुल अलग दिखाई देते हैं क्योंकि उनके भीतर ऊँच-नीच का फ़र्क बहुत कम होता है इसी वज़ह से ये समुदाय जाति-वर्ण पर आधारित समुदायों या राजाओं के शासन में रहने वाले समुदायों से बिल्कुल अलग होते हैं। विस्थापन से होने वाली परेशानियों और चुनौती अपनी जमीन और जंगलों से बिछड़ने पर आदिवासी समुदाय आजीविका और भोजन के अपने मुख्य स्रोतों से वंचित हो जाते हैं। अपने परंपरागत निवास स्थानों के छिनते जाने की वजह से बहुत सारे आदिवासी काम की तलाश में शहरों का रुख कर रहे हैं। वहाँ उन्हें छोटे-मोटे उद्योगों, इमारतों या निर्माण स्थलों पर बहुत मामूली वेतन वाली नौकरियाँ करनी पड़ती हैं। इस तरह वे गरीबी और लाचारी के जाल में फँसते चले जाते हैं। ग्रामीण इलाकों में 45 प्रतिशत और शहरी इलाकों में 35 प्रतिशत आदिवासी समूह गरीबी की रेखा से नीचे गुजर बसर करते हैं। इसकी वजह से वे कई तरह के अभावों का शिकार हो जाते हैं;। उनके बहुत सारे बच्चे कुपोषण के शिकार रहते हैं;। आदिवासियों के बीच साक्षरता भी बहुत कम है। जब आदिवासियों को उनकी जमीन से हटाया जाता है; तो उनकी आमदनी के स्रोत के अलावा और भी बहुत कुछ है; जो हमेशा के लिए नष्ट हो जाता है। वे अपनी परंपराएँ और रीति-रिवाज गँवा देते हैं; जो कि उनके जीने और अस्तित्व का स्रोत है। आदिवासियों के लिए सरकार द्वारा उठाये गए कदम केंद्र सरकार ने हाल ही में अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वनवासी (वन अधिकार मान्यता) अधिनियम, 2006 पारित किया है। इस कानून की प्रस्तावना में कहा गया है कि यह कानून जमीन और संसाधनों पर वन्य समुदायों के अधिकारों को मान्यता न देने के कारण उनके साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय को दूर करने के लिए पारित किया गया है। इस कानून में वन्य समुदायों को घर के आस-पास जमीन, खेती और चराई योग्य जमीन और गैर-लकड़ी वन उत्पादों पर उनके अधिकार को मान्यता दी गई है;। इस कानून में यह भी कहा गया है; कि वन एवं जैवविविधता संरक्षण भी वनवासियों के अधिकारों में आता है। गोंड जनजाति इसके द्वारा बोली जाने वाली भाषा को गोंडी कहा जाता है| गोंड जनजाति का मुख्य देवता “दूल्हा देव” है| महुआ का वृक्ष इनलोगों का महत्वपूर्ण वृक्ष है| इसके द्वारा की जाने वाली कृषि प्रथा को डिप्पा कहा जाता है| गोंड शब्द की उत्पत्ति कोंड से हुआ है और यह जनजाति का मूल जाति द्रविडियन है| इस जनजाति के लोग नृत्य और संगीत के सहारे अपना मनोरंजन करते है| इस जनजाति में मदिरापान बहुत ही आम बात है, ये लोग लगभग सभी ख़ुशी के मौके पर मदिरापान करते है और अपने परिजनों को करवाते है| बैगा जनजाति इस जनजाति के लोग को शरीर में गोदना बनवाना बहुत ही पसंद होता है, इसीलिए इसे गोदना प्रिय जनजाति कहा जाता है| बैगा का अर्थ ओझा होता है| इसीलिए यह कहा जाता है की ये लोग ओझा में ज्यादा विस्वास रखते है| इस जनजाति के लोग पीतल, तांबे और एल्यूमीनियम से बने आभूषण को पहनते है| इन लोगों का प्रमुख नृत्य करमा होता है| इसके झुण्ड के मुखिया को मुक्कदम कहा जाता है| आदिवासी के धर्म आदिवासियों के बहुत सारे जनजातीय धर्म होते हैं; उनके धर्म इस्लाम, हिंदु, ईसाई आदि धर्मों से बिल्कुल अलग हैं। वे अकसर अपने पुरखों की, गाँव और प्रकृति की उपासना करते हैं। प्रकृति से जुड़ी आत्माओं में पर्वत, नदी, पशु आदि की आत्माएँ हैं। ये विभिन्न स्थानीं से जुड़ी होती हैं और इनका वहीं निवास माना जाता है। ग्राम आत्माओं की अकसर गाँव की सीमा के भीतर निर्धारित पवित्र लता-कुंजों में पूजा की जाती है; जबकि पुरखों की उपासना घर में ही की जाती है। आदिवासी अपने आस-पास के बौद्ध और ईसाई आदि धर्मों व शाक्त, वैष्णव, भक्ति आदि पंथों से भी प्रभावित होते रहे हैं। लेकिन यह भी सच है कि आदिवासियों के धर्मों का आस-पास के साम्राज्यों में प्रचलित प्रभुत्वशाली धर्मा पर भी असर पड़ता रहा है। उड़ीसा का जगन्नाथ पंथ और बंगाल व असम की शक्ति एवं तांत्रिक परंपराएँ इसी के उदाहरण हैं। उन्नीसवीं सदी में बहुत सारे आदिवासियों ने ईसाई धर्म अपनाया जो आधुनिक आदिवासी इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण धर्म बन गया है। Post navigation Chhattisgarh Tribal Development Campaign completed in Rajnandgaon on 28 and 29 March 2023